चमत्कारी संतो के होते हुए भी यह मुल्क दीन क्यों है ?
आध्यात्म, ताजा खबरें, लाईफस्टाइल 10:52 pm
चमत्कार शब्द का हम प्रयोग करते है, तो साधु-संतों का खयाल आता है।
एक जो ठीक ढंग से मदारी हैं, ‘आनेस्ट‘ वे सड़क के चौराहों पर चमत्कार दिखाते है। दूसरे: ऐसे मदारी है, डिस्आनेस्ट, बेईमान, वे साधु-संतों के वेश में, वे ही चमत्कार दिखलाते है। जो चौरस्तों पर दिखाई जाते है।
बेईमान मदारी सिनर है, अपराधी है, क्योंकि मदारीपन के अधार पर वह कुछ और मांग कर रहा है। अभी मैं कुछ वर्ष पहले एक गांव में था। एक बूढ़ा आदमी आया। मित्र लेकर आये थे और कहा कि आपको कुछ काम दिखलाना चाहते है। मैंने कहा, दिखायें। उस बढ़े ने अद्भुत काम दिखलाये। रूपये को मेरे सामने फेंका वह दो फिट ऊपर जाकर हवा में विलीन हो गया।
मैंने उस बूढे आदमी से कहा, बड़ा चमत्कार करते है आप। उसने कहा, नहीं यह कोई चमत्कार नहीं है। सिर्फ हाथ की तरकीब है। मैंने कहा, तुम पागल हो। सत्य साई बाबा हो सकते थे। क्या कर रहे हो। क्यों इतनी सच्ची बात बोलते हो? इतनी ईमानदारी उचित नहीं है। लाखों लोग तुम्हारे दर्शन करते। तुम्हें मुझे दिखाने ने आना होता, मैं ही तुम्हारे दर्शन करता। वह बह बूढ़ा आदमी हंसने लगा। कहने लगा, चमत्कार कुछ भी नहीं है। सिर्फ हाथ की तरकीब है।
उसने सामने ही — कोई मुझे मिठाई भेंट कर गया था— एक लडडू उठाकर मुंह में डाला, चबाया, पानी पी लिया। फिर उसने कहा कि नहीं, पसंद नहीं आया। फिर उसे पेट जो से खींचा पकड़कर लडडू को वापिस निकालकर सामने रख दिया। मैंने कहा, अब तो पक्का ही चमत्कार है। उसने कहा कि नहीं। अब दुबारा आप कहिये, तो मैं न दिखा सकूंगा, क्योंकि लडडू छिपाकर आया अरे वह लडडू पहले मैंने ही भेट भिजवाये था।
इसके पहले जो दे गया है, अपना ही आदमी है। मगर वह ईमानदार आदमी है। एक अच्छा आदमी है। यह मदारी समझा जायेगा। इसे कोई संत समझता तो कोई बुरा न था, कम से कम सच्चा तो था। लेकिन मदारियों के दिमाग है, और वह कर रहे है यही काम। कोई राख की पुड़िया निकाल रहा है। कोई ताबीज निकाल रहा है। कोई स्विस मेड घड़ियाँ निकाल रहा है। और छोटे—साधारण नहीं—जिनको हम साधारण नहीं कहते है, गवर्नर, वाइस चाइन्सलर है, हाईकोर्ट के जजेस है, वह भी मदारियों के आगे हाथ जोड़े खड़े है।
हमारे गर्वनर भी ग्रामीण से ऊपर नहीं उठ सके है। उनकी बुद्धि भी साधारण ग्रामीण आदमी से ज्यादा नहीं। फर्क इतना है कि ग्रामीण आदमी के पास सर्टिफिकेट नहीं है। उसके पास सर्टिफिकेट है। चमत्कार—इस जगत में चमत्कार जैसी चीज सब में होती नहीं, हो नहीं सकती। इस जगत में जो कुछ होता है, नियम से होता है। हां, यह हो सकता है, नियम का हमें पता न हो। यह हो सकता है कि कार्य, कारण को हमें बोध न हो।
यह हो सकता है कि कोई लिंक, कोई लिंक, कोई अज्ञात हो, जो हमारी पकड़ में नहीं आती, इसलिए बाद की कड़ियों को समझना बहुत मुश्किल हो जाता है। बाकू में—उन्नीस सौ सत्रह के पहले, जब रूस में क्रांति हुई थी—उन्नीस सौ सत्रह के पहले, बाकू में एक मंदिर था। उस मंदिर के पास प्रति वर्ष एक मेला लगता था। वह दुनिया का सबसे बड़ा मेला था। कोई दो करोड़ आदमी वहां इकट्ठा होते थे। और बहुत चमत्कार की जगह थी वह, अपने आप अग्नि उत्पन्न होती थी। वेदी पर अग्नि की लपटें प्रगट हो जाती थीं।
लाखों लोग खड़े होकर देखते थे। कोई धोखा न था। कोई जीवन न था, कोई आग जलाता न था। कोई वेदी पास आता न था। वेदी पर अपने आप अग्नि प्रगट होती थी। चमत्कार भारी था। सैकड़ों वर्षो से पूजा होती थी। भगवान प्रगट होते, अग्नि के रूप में अपने आप। फिर उन्नीस सौ सत्रह में रक्त क्रांति हो गयी। जो लोग आये, वह विश्वासी न थे, उन्होंने मड़िया उखाड़कर फेंक दी और गड्ढे खोदे। पता चला, वहां तेल के गहरे कुंए है—मिट्टी के तेल, मगर फिर भी यह बात तो साफ हो गयी कि मिट्टी के तेल के घर्षण से भी आग पैदा होती है।
लेकिन खास दिन ही होती थी। जब तो खोज-बीन करन पड़ी तो पता चला कि जब पृथ्वी एक विशेष कोण पर होती है। अपने झुकाव के, तभी नीचे के तेल में घर्षण हो जाती है। इसलिए निश्चित दिन पर प्रतिवर्ष वह आग पैदा हो जाती थी। जब यह बात साफ़ हो गयी। तब वहां मेला लगना बंद हो गया। अब भी वहां आग पैदा होती है। लेकिन अब कोई इकट्टा नहीं होता है। क्योंकि कार्य कारण पता चल गया है। बात साफ़ हो गयी है। अग्नि देवता अब भी प्रकट होते है, लेकिन वह केरोसिन देवता होते है। अब वह अग्नि देवता नहीं रह गये।
चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं होती। चमत्कार का मतलब सिर्फ इतना ही होती है कि कुछ है जो अज्ञात है, कुछ है जो छिपा है, कोई कड़ी साफ़ नहीं है वह हो रहा है। एक पत्थर होता है अफ्रीका में, जो पानी को भाप को पी जाता है, पारस होता है। थोड़े से उसमें छेद होते है। वह भाप को पी लेते है। तो वर्षा में वह भाप को पी जाता है, लेकिन वह स्पंजी है। उसकी मूर्ति बन जाती है। वह मूर्ति जब गर्मी पड़ती है, जैसे सूरज से अभी पड़ रही है, उसमें से पसीना आने लगता है। उस तरह के पत्थर और भी दुनियां में पाये जाते है।
पंजाब में एक मूर्ति है, वह उसी पत्थर की बनी हुई है। जब गर्मी होती है। तो भक्त गण पंखा झलते है, उस मूर्ति को की भगवान को पसीना आ रहा है। और बड़ी भीड़ इकट्ठी होती है। क्योंकि बड़ा चमत्कार है—पत्थर की मूर्ति को पसीना आये। तो जब मैं उस गांव में ठहरा था तो एक सज्जन ने मुझे आकर कहा कि आप मजाक उड़ाते है। आप सामने देख लीजिए चलकर भगवान को पसीना आता है। और आप मजाक उड़ाते है। आप कहते है, भगवान को सुबह-सुबह दातुन न क्यों रखते हो, पागल हो गये हो, पत्थर को दातुन रखते हो।
कहते हो, भगवान सोयेंगे, अब भोजन करेंगे। जब उनको पसीना आ रहा है। तो बाकी सब चीजें भी ठीक हो सकती है। वह ठीक कह रहा है। उसे कुछ पता नहीं है उसमें से पसीना निकलता है। जिस ढंग से आप में पसीना बह रहा है। उसी ढंग से उसमें भी बहने लगता है। आप में भी पसीना कोई चमत्कार नहीं है। आपका शरीर पारस है तो वह पानी पी जाता है। और जब गर्मी होती है। तो शरीर की अपनी एअरकंडीसिनिंग की व्यवस्था है।
वह पानी को छोड़ देता है, ताकि भाप बनकर उड़े, और शरीर को ज्यादा गर्मी न लगे। वह पत्थर भी पानी पी गया है। लेकिन जब तक हमें पता नहीं है। तब तक बड़ा मुश्किल होता है। फिर इस संबंध में जिस वजह से उन्होंने पूछा होगा, वह मेरे ख्याल में है। दो बातें और समझ लेनी चाहिए। एक तो यह कि चमत्कार संत तो कभी नहीं करेगा। नहीं करेगा, क्योंकि कोई संत आपके अज्ञान को न बढ़ाना चाहेगा। और कोई संत आपके अज्ञान का शोषण नहीं करना चाहेगा। संत आपके अज्ञान को तोड़ना चाहता है। बढ़ाना नहीं चाहता है।
और चमत्कार दिखाने से होगा क्या? और बड़े मजे की बात है, क्योंकि पूछते है कि जो लोग राख से पुड़िया निकालते है, आकाश से ताबीज गिराते है..... काहे को मेहनत कर रहे हैं, राख की पुड़िया से किसका पेट भरेगा। ऐटमिक भट्ठियाँ आकाश से उतारों, कुछ काम होगा। जमीन पर उतारों, गेहूँ उतारों— गेहूँ के लिए अमरीका के हाथ जोड़ों, और असली चमत्कार हमारे यहां हो रहे है।
तो गेहूँ क्यों नहीं उतार लेते हो। राख की पुड़िया से क्या होगा, गेहूँ बरसाओ। जब चमत्कार ही कर रहे हो। तो कुछ ऐसा चमत्कार करो कि मुल्क को कुछ हित हो सके। सबके ज्यादा गरीब मुल्क, जमीन पर उतारों गेहूँ उतारों घन, सोना, चांदी, होने दो हीरे मोतियों कि बारिश, मिट्टी से बनाओ सोना। चमत्कार ही करने है तो कुछ ऐसे करो।
स्विस मेड घडी चमत्कार से निकालते हो। तो क्या फायदा होगा। कम से कम मेड इन इंडिया भी निकालों तो क्या होने वाला है। मदारी गिरी से होगा क्या? कभी हम सोचें कि हम इस पागलपन में किस भ्रांति में भटकते है। पिछले दो ढाई हजार वर्षो से, इन्हीं पागलों के चक्कर में लगे हुए है। और हम कैसे लोग है कि हम यह नहीं पूछते कि माना कि आपने राख की पुड़िया निकाल ली, अब क्या मतलब है, होना क्या है? चमत्कार किया, बिलकुल चमत्कार किया, लेकिन राख की पुड़िया से होना क्या है?
कुछ और निकालों, कुछ काम की बात निकाल लो। वह कुछ नहीं, नहीं वह मुल्क दीन क्यों है, यहां तो एक चमत्कारी संत पैदा हो जाये तो सब ठीक हो जाए।
एक जो ठीक ढंग से मदारी हैं, ‘आनेस्ट‘ वे सड़क के चौराहों पर चमत्कार दिखाते है। दूसरे: ऐसे मदारी है, डिस्आनेस्ट, बेईमान, वे साधु-संतों के वेश में, वे ही चमत्कार दिखलाते है। जो चौरस्तों पर दिखाई जाते है।
बेईमान मदारी सिनर है, अपराधी है, क्योंकि मदारीपन के अधार पर वह कुछ और मांग कर रहा है। अभी मैं कुछ वर्ष पहले एक गांव में था। एक बूढ़ा आदमी आया। मित्र लेकर आये थे और कहा कि आपको कुछ काम दिखलाना चाहते है। मैंने कहा, दिखायें। उस बढ़े ने अद्भुत काम दिखलाये। रूपये को मेरे सामने फेंका वह दो फिट ऊपर जाकर हवा में विलीन हो गया।
मैंने उस बूढे आदमी से कहा, बड़ा चमत्कार करते है आप। उसने कहा, नहीं यह कोई चमत्कार नहीं है। सिर्फ हाथ की तरकीब है। मैंने कहा, तुम पागल हो। सत्य साई बाबा हो सकते थे। क्या कर रहे हो। क्यों इतनी सच्ची बात बोलते हो? इतनी ईमानदारी उचित नहीं है। लाखों लोग तुम्हारे दर्शन करते। तुम्हें मुझे दिखाने ने आना होता, मैं ही तुम्हारे दर्शन करता। वह बह बूढ़ा आदमी हंसने लगा। कहने लगा, चमत्कार कुछ भी नहीं है। सिर्फ हाथ की तरकीब है।
उसने सामने ही — कोई मुझे मिठाई भेंट कर गया था— एक लडडू उठाकर मुंह में डाला, चबाया, पानी पी लिया। फिर उसने कहा कि नहीं, पसंद नहीं आया। फिर उसे पेट जो से खींचा पकड़कर लडडू को वापिस निकालकर सामने रख दिया। मैंने कहा, अब तो पक्का ही चमत्कार है। उसने कहा कि नहीं। अब दुबारा आप कहिये, तो मैं न दिखा सकूंगा, क्योंकि लडडू छिपाकर आया अरे वह लडडू पहले मैंने ही भेट भिजवाये था।
इसके पहले जो दे गया है, अपना ही आदमी है। मगर वह ईमानदार आदमी है। एक अच्छा आदमी है। यह मदारी समझा जायेगा। इसे कोई संत समझता तो कोई बुरा न था, कम से कम सच्चा तो था। लेकिन मदारियों के दिमाग है, और वह कर रहे है यही काम। कोई राख की पुड़िया निकाल रहा है। कोई ताबीज निकाल रहा है। कोई स्विस मेड घड़ियाँ निकाल रहा है। और छोटे—साधारण नहीं—जिनको हम साधारण नहीं कहते है, गवर्नर, वाइस चाइन्सलर है, हाईकोर्ट के जजेस है, वह भी मदारियों के आगे हाथ जोड़े खड़े है।
हमारे गर्वनर भी ग्रामीण से ऊपर नहीं उठ सके है। उनकी बुद्धि भी साधारण ग्रामीण आदमी से ज्यादा नहीं। फर्क इतना है कि ग्रामीण आदमी के पास सर्टिफिकेट नहीं है। उसके पास सर्टिफिकेट है। चमत्कार—इस जगत में चमत्कार जैसी चीज सब में होती नहीं, हो नहीं सकती। इस जगत में जो कुछ होता है, नियम से होता है। हां, यह हो सकता है, नियम का हमें पता न हो। यह हो सकता है कि कार्य, कारण को हमें बोध न हो।
यह हो सकता है कि कोई लिंक, कोई लिंक, कोई अज्ञात हो, जो हमारी पकड़ में नहीं आती, इसलिए बाद की कड़ियों को समझना बहुत मुश्किल हो जाता है। बाकू में—उन्नीस सौ सत्रह के पहले, जब रूस में क्रांति हुई थी—उन्नीस सौ सत्रह के पहले, बाकू में एक मंदिर था। उस मंदिर के पास प्रति वर्ष एक मेला लगता था। वह दुनिया का सबसे बड़ा मेला था। कोई दो करोड़ आदमी वहां इकट्ठा होते थे। और बहुत चमत्कार की जगह थी वह, अपने आप अग्नि उत्पन्न होती थी। वेदी पर अग्नि की लपटें प्रगट हो जाती थीं।
लाखों लोग खड़े होकर देखते थे। कोई धोखा न था। कोई जीवन न था, कोई आग जलाता न था। कोई वेदी पास आता न था। वेदी पर अपने आप अग्नि प्रगट होती थी। चमत्कार भारी था। सैकड़ों वर्षो से पूजा होती थी। भगवान प्रगट होते, अग्नि के रूप में अपने आप। फिर उन्नीस सौ सत्रह में रक्त क्रांति हो गयी। जो लोग आये, वह विश्वासी न थे, उन्होंने मड़िया उखाड़कर फेंक दी और गड्ढे खोदे। पता चला, वहां तेल के गहरे कुंए है—मिट्टी के तेल, मगर फिर भी यह बात तो साफ हो गयी कि मिट्टी के तेल के घर्षण से भी आग पैदा होती है।
लेकिन खास दिन ही होती थी। जब तो खोज-बीन करन पड़ी तो पता चला कि जब पृथ्वी एक विशेष कोण पर होती है। अपने झुकाव के, तभी नीचे के तेल में घर्षण हो जाती है। इसलिए निश्चित दिन पर प्रतिवर्ष वह आग पैदा हो जाती थी। जब यह बात साफ़ हो गयी। तब वहां मेला लगना बंद हो गया। अब भी वहां आग पैदा होती है। लेकिन अब कोई इकट्टा नहीं होता है। क्योंकि कार्य कारण पता चल गया है। बात साफ़ हो गयी है। अग्नि देवता अब भी प्रकट होते है, लेकिन वह केरोसिन देवता होते है। अब वह अग्नि देवता नहीं रह गये।
चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं होती। चमत्कार का मतलब सिर्फ इतना ही होती है कि कुछ है जो अज्ञात है, कुछ है जो छिपा है, कोई कड़ी साफ़ नहीं है वह हो रहा है। एक पत्थर होता है अफ्रीका में, जो पानी को भाप को पी जाता है, पारस होता है। थोड़े से उसमें छेद होते है। वह भाप को पी लेते है। तो वर्षा में वह भाप को पी जाता है, लेकिन वह स्पंजी है। उसकी मूर्ति बन जाती है। वह मूर्ति जब गर्मी पड़ती है, जैसे सूरज से अभी पड़ रही है, उसमें से पसीना आने लगता है। उस तरह के पत्थर और भी दुनियां में पाये जाते है।
पंजाब में एक मूर्ति है, वह उसी पत्थर की बनी हुई है। जब गर्मी होती है। तो भक्त गण पंखा झलते है, उस मूर्ति को की भगवान को पसीना आ रहा है। और बड़ी भीड़ इकट्ठी होती है। क्योंकि बड़ा चमत्कार है—पत्थर की मूर्ति को पसीना आये। तो जब मैं उस गांव में ठहरा था तो एक सज्जन ने मुझे आकर कहा कि आप मजाक उड़ाते है। आप सामने देख लीजिए चलकर भगवान को पसीना आता है। और आप मजाक उड़ाते है। आप कहते है, भगवान को सुबह-सुबह दातुन न क्यों रखते हो, पागल हो गये हो, पत्थर को दातुन रखते हो।
कहते हो, भगवान सोयेंगे, अब भोजन करेंगे। जब उनको पसीना आ रहा है। तो बाकी सब चीजें भी ठीक हो सकती है। वह ठीक कह रहा है। उसे कुछ पता नहीं है उसमें से पसीना निकलता है। जिस ढंग से आप में पसीना बह रहा है। उसी ढंग से उसमें भी बहने लगता है। आप में भी पसीना कोई चमत्कार नहीं है। आपका शरीर पारस है तो वह पानी पी जाता है। और जब गर्मी होती है। तो शरीर की अपनी एअरकंडीसिनिंग की व्यवस्था है।
वह पानी को छोड़ देता है, ताकि भाप बनकर उड़े, और शरीर को ज्यादा गर्मी न लगे। वह पत्थर भी पानी पी गया है। लेकिन जब तक हमें पता नहीं है। तब तक बड़ा मुश्किल होता है। फिर इस संबंध में जिस वजह से उन्होंने पूछा होगा, वह मेरे ख्याल में है। दो बातें और समझ लेनी चाहिए। एक तो यह कि चमत्कार संत तो कभी नहीं करेगा। नहीं करेगा, क्योंकि कोई संत आपके अज्ञान को न बढ़ाना चाहेगा। और कोई संत आपके अज्ञान का शोषण नहीं करना चाहेगा। संत आपके अज्ञान को तोड़ना चाहता है। बढ़ाना नहीं चाहता है।
और चमत्कार दिखाने से होगा क्या? और बड़े मजे की बात है, क्योंकि पूछते है कि जो लोग राख से पुड़िया निकालते है, आकाश से ताबीज गिराते है..... काहे को मेहनत कर रहे हैं, राख की पुड़िया से किसका पेट भरेगा। ऐटमिक भट्ठियाँ आकाश से उतारों, कुछ काम होगा। जमीन पर उतारों, गेहूँ उतारों— गेहूँ के लिए अमरीका के हाथ जोड़ों, और असली चमत्कार हमारे यहां हो रहे है।
तो गेहूँ क्यों नहीं उतार लेते हो। राख की पुड़िया से क्या होगा, गेहूँ बरसाओ। जब चमत्कार ही कर रहे हो। तो कुछ ऐसा चमत्कार करो कि मुल्क को कुछ हित हो सके। सबके ज्यादा गरीब मुल्क, जमीन पर उतारों गेहूँ उतारों घन, सोना, चांदी, होने दो हीरे मोतियों कि बारिश, मिट्टी से बनाओ सोना। चमत्कार ही करने है तो कुछ ऐसे करो।
स्विस मेड घडी चमत्कार से निकालते हो। तो क्या फायदा होगा। कम से कम मेड इन इंडिया भी निकालों तो क्या होने वाला है। मदारी गिरी से होगा क्या? कभी हम सोचें कि हम इस पागलपन में किस भ्रांति में भटकते है। पिछले दो ढाई हजार वर्षो से, इन्हीं पागलों के चक्कर में लगे हुए है। और हम कैसे लोग है कि हम यह नहीं पूछते कि माना कि आपने राख की पुड़िया निकाल ली, अब क्या मतलब है, होना क्या है? चमत्कार किया, बिलकुल चमत्कार किया, लेकिन राख की पुड़िया से होना क्या है?
कुछ और निकालों, कुछ काम की बात निकाल लो। वह कुछ नहीं, नहीं वह मुल्क दीन क्यों है, यहां तो एक चमत्कारी संत पैदा हो जाये तो सब ठीक हो जाए।
Posted by राजबीर सिंह
at 10:52 pm.