श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के नाम एक अमरीकी अदालत ने जारी किया सम्मन

श्रीलंका के न्याय मंत्रालय को देश में जारी लड़ाई के दौरान तमिल नागरिकों की मौत के सिलसिले में राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के नाम एक अमरीकी अदालत से जारी सम्मन या तलबी चिट्ठी मिली है.

याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि श्रीलंका में जारी गृह युद्ध के दौरान तमिल नागरिकों की ग़लत तरह से हत्या की गई थी.

सत्तर के दशक से लेकर 2009 तक श्रीलंका में तमिल विद्रोही संगठन लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम यानि एलटीटीई और सरकार के बीच लड़ाई जारी थी.

ये तीनों मुक़दमे मारे गए लोगों के रिश्तेदारों ने ह्वेग संधि के भीतर दायर किए गए हैं.

ह्वेग संधि युद्ध की नियमों और उससे जुड़े आपराधिक मामलों के संदर्भ में तैयार अंतरराष्ट्रीय समझौता है.

मुक़दमे

श्रीलंका के स्थानीय समाचार पत्र 'डेली मिरर' ने कहा है कि ये तीनों मुक़दमे कथित तौर पर मारे गए सात लोगों, छात्र रागीहर मनोहरन, मानवधिकार कार्यकर्ता प्रमास आनंदराजा और टी थवाराजा के रिश्तेदारों ने दायर किए हैं.

अख़बार का कहना है कि मुक़दमों में अमरीकी क़ानून के भीतर याचिकाकर्ताओं ने तीन करोड़ डालर हर्जाने की मांग की है.

मुक़दमा दायर करनेवालों का कहना है कि चूंकि राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे श्रीलंका की सेना के प्रमुख हैं इसीलिए अपनी फ़ौज की कार्रवाई की ज़िम्मेदारी उन्हीं पर बनती है.

श्रीलंका पर मानवधिकार के घोर हनन का आरोप संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से भी लग चुका है.

अप्रैल में जारी एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि वर्ष 2009 में तमिल विद्रोहियों के ख़िलाफ़ लड़ाई के अंतिम महीनों में जिन हज़ारों नागरिकों की मौत हुई उनमें से ज़्यादातर को श्रीलंका सरकार के सैनिकों ने मारा था.

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तमिलों के अधिकारों के नाम पर लड़नेवाली एलटीटीई के ऊपर भी मानवधिकार के उलंघन के गंभीर आरोप हैं.

लेकिन साथ ही रिपोर्ट में तमिल विद्रोहियों पर नागरिकों को मानव ढाल की तरह इस्तेमाल करने की बात भी कही गई थी.

'कोई जवाब नहीं'

हालांकि स्थानीय 'द संडे टाईम्स' ने न्याय मंत्रालय के अधिकारी सुहादा गमलथ के हवाले से कहा है कि श्रीलंका ने इस तलबी चिट्ठी का कोई जवाब नहीं दिया है.

गमलथ ने अख़बार से कहा है कि श्रीलंका के क़ानून के तहत अगर ये लगता है कि ऐसे किसी सम्मन या नोटिस का असर देश की संप्रभुता पर पड़ेगा तो उसका जवाब देना ज़रूरी नहीं है.

समाचार पत्र ने श्रीलंका के विदेश मंत्रालय का बयान भी छापा है जिसमें कहा गया है कि ये राष्ट्रपति और श्रीलंका की सरकार को बदनाम करने की एक कोशिश है.

याचिकाकर्ताओं के वकील ब्रूस फ़िन ने कहा है कि सम्मन का जवाब नहीं देने का मतलब होगा कि अनकहे तौर पर राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे इन नागरिकों की 'हत्या' का आरोप स्वीकार करते हैं.

Posted by राजबीर सिंह at 11:09 pm.
 

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