दूषित समुद्री जल शोधन के लिए प्रौद्योगिकी विकसित
ताजा खबरें, विज्ञान 9:30 am
डोना पाउला (गोवा)। देश में एक ऐसी पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी विकसित की गई है, जिसके जरिए मालवाहक पोतों के साथ हमारी सीमा में आने वाले समुद्री जल का शोधन किया जाएगा। पोतों के साथ आने वाले समुद्री जल में अजनबी जीवाणु और यहां तक कि रेडियोधर्मी तत्व भी होते हैं, जो समुद्री पारिस्थितिकी के लिए नुकसानदायक साबित होते हैं।
दरअसल समुद्री जहाज को पानी में स्थिरता प्रदान करने के लिए उसमें उपस्थित टंकियों और तली में लाखों गैलन पानी का संग्रह किया जाता है। इस पानी के बोझ से जहाज स्थिर रहती है। इस जल को बल्लास्ट वाटर कहा जाता है।
जहाज रवाना होने से पहले बंदरगाह पर उसमें पानी का संग्रह किया जाता है और गंतव्य पर पहुंचने के बाद जल को वहां प्रवाहित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में एक स्थान के जीवाणु, रोग, विभिन्न पादप और जीव-जंतु एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं, जो उस स्थान की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इस प्रक्रिया में परमाणु विकिरण युक्त जल भी एक बंदरगाह से दूसरे बंदरगाह तक पहुंच सकता है। इसलिए इस जल को इन अनपेक्षित तत्वों से मुक्त करना पर्यावरण की रक्षा और विविधता को बरकरार रखने के लिए जरूरी है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसिनोग्राफी (एनआईओ) के वैज्ञानिक ए.सी.अनिल के मुताबिक बल्लास्ट वाटर को प्रसंस्कृत करने की प्रौद्योगिकी का विकास एनआईओ ने पुणे की नेशनल कैमिकल लेबोरेटरी और मुम्बई यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी के सहयोग से किया है। इसके तहत पानी में मौजूद जीवों को संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरनेशनल मारीटाइम ऑर्गनाइजेशन के बताए स्तर तक मारा जा सकता है।
बल्लास्ट वाटर प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी को जहाजरानी मंत्रालय से सहयोग मिल रहा है और इसी साल इसका पेटेंट भी करा लिया गया है।
इस प्रौद्योगिकी का उपयोग देश के चार बंदरगाहों पर हो चुका है, जिसमें से दो मुम्बई में और एक-एक विशाखापत्तनम तथा गोवा में हैं। देश के सभी 12 बड़े बंदरगाहों पर यह प्रौद्योगिकी 2016 तक स्थापित कर दी जाएगी।
यह प्रौद्योगिकी कम खर्चीली है और इससे जहाज और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता है।
जापान में परमाणु आपदा के बाद वहां समुद्री जल के परमाणु विकिरण से प्रभावित होने के संदर्भ में यह प्रौद्योगिकी काफी प्रासंगिक है।
दरअसल समुद्री जहाज को पानी में स्थिरता प्रदान करने के लिए उसमें उपस्थित टंकियों और तली में लाखों गैलन पानी का संग्रह किया जाता है। इस पानी के बोझ से जहाज स्थिर रहती है। इस जल को बल्लास्ट वाटर कहा जाता है।
जहाज रवाना होने से पहले बंदरगाह पर उसमें पानी का संग्रह किया जाता है और गंतव्य पर पहुंचने के बाद जल को वहां प्रवाहित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में एक स्थान के जीवाणु, रोग, विभिन्न पादप और जीव-जंतु एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं, जो उस स्थान की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इस प्रक्रिया में परमाणु विकिरण युक्त जल भी एक बंदरगाह से दूसरे बंदरगाह तक पहुंच सकता है। इसलिए इस जल को इन अनपेक्षित तत्वों से मुक्त करना पर्यावरण की रक्षा और विविधता को बरकरार रखने के लिए जरूरी है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसिनोग्राफी (एनआईओ) के वैज्ञानिक ए.सी.अनिल के मुताबिक बल्लास्ट वाटर को प्रसंस्कृत करने की प्रौद्योगिकी का विकास एनआईओ ने पुणे की नेशनल कैमिकल लेबोरेटरी और मुम्बई यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी के सहयोग से किया है। इसके तहत पानी में मौजूद जीवों को संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरनेशनल मारीटाइम ऑर्गनाइजेशन के बताए स्तर तक मारा जा सकता है।
बल्लास्ट वाटर प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी को जहाजरानी मंत्रालय से सहयोग मिल रहा है और इसी साल इसका पेटेंट भी करा लिया गया है।
इस प्रौद्योगिकी का उपयोग देश के चार बंदरगाहों पर हो चुका है, जिसमें से दो मुम्बई में और एक-एक विशाखापत्तनम तथा गोवा में हैं। देश के सभी 12 बड़े बंदरगाहों पर यह प्रौद्योगिकी 2016 तक स्थापित कर दी जाएगी।
यह प्रौद्योगिकी कम खर्चीली है और इससे जहाज और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता है।
जापान में परमाणु आपदा के बाद वहां समुद्री जल के परमाणु विकिरण से प्रभावित होने के संदर्भ में यह प्रौद्योगिकी काफी प्रासंगिक है।
Posted by राजबीर सिंह
at 9:30 am.