अल्लाह की इबादत और उसके जज़्बे को शिद्दत से जीने का इनाम है "ईद"

ईद-उल-फित्र रमजान के पाक महीने में अल्लाह की इबादत और उसके असल जज़्बे को शिद्दत से जीने का इनाम है.

यह त्यौहार खुद में तमाम सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को समेटे है. सिवइयों के लच्छों में लिपटी मुहब्बत की मिठास के इस त्यौहार से जुड़ी रवायतें इसे एक मुकम्मल पर्व बनाती हैं.

ईद रोजेदारों को अल्लाह का दिया कीमती इनाम है और इसे सही ढंग से मनाना भी किसी इबादत से कम नहीं है.

प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद के मुहतमिम मौलाना अब्दुल कासिम नोमानी ने ईद के विभिन्न पहलुओं के बारे में तफसील से बताया. उन्होंने कहा कि ईद ईमान वालों को अल्लाह का दिया इनाम है और इसका असल मकसद लोगों को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से परस्पर जोड़कर सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करना है.

उन्होंने बताया कि पैगम्बर मोहम्मद साहब ने रमजान की परम्परा डाली थी और उसके बाद मनाई जाने वाली ईद में जकात और फितरे जैसी नई परम्पराएं जोड़ी गईं, ताकि ईद समाज में हाशिये पर खड़े शख्स के लिये भी राहत और खुशी का मौका बन सके.

अल्लाह ने ईद के दिन एक इलाके में रहने वाले सभी लोगों को एक जगह इकट्ठा होकर ईद-उल-फित्र की नमाज़ अदा करने और गले मिलकर बधाई देने का हुक्म दिया है ताकि लोग एक-दूसरे से जुड़ें और भाईचारा कायम हो.

नोमानी ने बताया कि ईद में ‘सदका-ए-फित्र’ देने का रिवाज है. हदीस में इसका जिक्र भी है. इसके तहत समाज के अमीर और आर्थिक रूप से सक्षम लोग गरीब तबके के लोगों को भोजन या धन देते हैं ताकि वे मजबूर लोग भी ईद मना सकें.

मौलाना नोमानी ने बताया कि वैसे तो इस्लाम में जकात देने का कोई वक्त मुकर्रर नहीं किया गया है लेकिन आम तौर पर यह काम भी रमजान में किया जाता है ताकि गरीब लोग ईद मना सकें.

उन्होंने बताया कि सात तोला सोना या 52 तोला चांदी या उनकी कीमत के बराबर रकम के मालिक हर मुसलमान को अपनी इस सम्पत्ति का ढाई फीसद हिस्सा जकात के तौर पर निकालना जरूरी है. यह धन गरीबों को सार्वजनिक रूप से देने के बजाय बेहद पोशीदा ढंग से ही देना चाहिये, ऐसा नहीं करने से उस दान को अल्लाह मान्यता नहीं देते हैं.

नोमानी ने बताया कि ईद उल्लास के साथ मनाई जानी चाहिये लेकिन इसकी खुशी भी मर्यादाओं के दायरे में रहकर ही मनानी चाहिये, ताकि उसका मकसद खराब नहीं हो.

ईद के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर नज़र डालें तो यह बिल्कुल मुकम्मल त्यौहार कहा जा सकता है. ईद से पहले रमजान में लोग कपड़े सिलवाते और खरीदते हैं तो इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिये ईद का इंतज़ाम हो जाता है.

ईद के लिये लोग बर्तन, साज-सज्जा, खाने-पीने का सामान और दीगर जरूरत की चीजें खरीदते हैं. इससे उन कारोबार से जुड़े लोगों को भी ईद मनाने का मौका मिलता है.

इसके अलावा जकात और फितरे के प्रावधान से गरीब लोग भी ईद की खुशी मना पाते हैं.

Posted by राजबीर सिंह at 7:38 pm.
 

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