लोकपाल विधेयक : सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों के बीच आज अंतिम और निर्णायक बैठक
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लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए सरकार और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों के बीच मंगलवार को अंतिम और निर्णायक बैठक है.
सरकार प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने पर राजी हो गई है. हालांकि उसकी कुछ शर्तें भी हैं. एक शर्त यह है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत ली तो जाएगी, पर उसकी जांच या उस पर कार्रवाई तभी होगी जब वह व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ चुका होगा.
बैठक का एक दौर सोमवार को भी हुआ था जहाँ इस मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच कड़वाहट कुछ कम होती नज़र आई, हालांकि कई मसलों पर अहसहमति बनी हुई है.
टीम अन्ना की ओर से प्रशांत भूषण ने बताया कि बैठक का माहौल अच्छा था. कई मुद्दों पर सहमति बनी, लेकिन दो नए मामलों पर मतभेद भी उभर गए.
उन्होंने कहा कि लोकपाल को गठित करने वाली चयन समिति में कौन लोग शामिल होंगे, इस पर असहमति उभरकर सामने आई है. भूषण ने कहा कि ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल केंद्र सरकार के नुमाइंदे चयन समिति में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहते हैं. जबकि सिविल सोसाइटी के सदस्य स्वतंत्र लोगों को इस समिति में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.
इसके अलावा लोकपाल समिति को हटाने के लिए अपील के अधिकार को लेकर भी मतभेद सामने आया है. सरकारी प्रतिनिधि चाहते हैं कि लोकपाल समिति को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील का हक केंद्र सरकार के पास रहे. लेकिन सिविल सोसाइटी के सदस्यों का कहना है कि लोकपाल समिति को हटाने के लिए अपील का हक सबको होना चाहिए.
तीस जून तक सरकार को लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार कर लेना है. इसके बाद मसौदे पर सर्वदलीय बैठक कराई जाएगी. यह विधेयक संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाना है.
सोमवार को हुई बैठक के बाद केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण ने कहा था कि बैठक अच्छे माहौल में समाप्त हुई. लेकिन प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने समेत कई पहलुओं पर दोनों पक्षों में अब भी एकराय नहीं है.
मंगलवार की बैठक के बाद असहमति के तमाम बिन्दुओं के साथ दोनों पक्षों की अनुशंसाओं को कैबिनेट के पास भेज दिया जाएगा. इसके बाद सरकार और नागरिक समाज के सदस्य अन्य राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरु करेंगे.
सरकार प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने पर राजी हो गई है. हालांकि उसकी कुछ शर्तें भी हैं. एक शर्त यह है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत ली तो जाएगी, पर उसकी जांच या उस पर कार्रवाई तभी होगी जब वह व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ चुका होगा.
बैठक का एक दौर सोमवार को भी हुआ था जहाँ इस मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच कड़वाहट कुछ कम होती नज़र आई, हालांकि कई मसलों पर अहसहमति बनी हुई है.
टीम अन्ना की ओर से प्रशांत भूषण ने बताया कि बैठक का माहौल अच्छा था. कई मुद्दों पर सहमति बनी, लेकिन दो नए मामलों पर मतभेद भी उभर गए.
उन्होंने कहा कि लोकपाल को गठित करने वाली चयन समिति में कौन लोग शामिल होंगे, इस पर असहमति उभरकर सामने आई है. भूषण ने कहा कि ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल केंद्र सरकार के नुमाइंदे चयन समिति में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहते हैं. जबकि सिविल सोसाइटी के सदस्य स्वतंत्र लोगों को इस समिति में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.
इसके अलावा लोकपाल समिति को हटाने के लिए अपील के अधिकार को लेकर भी मतभेद सामने आया है. सरकारी प्रतिनिधि चाहते हैं कि लोकपाल समिति को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील का हक केंद्र सरकार के पास रहे. लेकिन सिविल सोसाइटी के सदस्यों का कहना है कि लोकपाल समिति को हटाने के लिए अपील का हक सबको होना चाहिए.
तीस जून तक सरकार को लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार कर लेना है. इसके बाद मसौदे पर सर्वदलीय बैठक कराई जाएगी. यह विधेयक संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाना है.
सोमवार को हुई बैठक के बाद केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण ने कहा था कि बैठक अच्छे माहौल में समाप्त हुई. लेकिन प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने समेत कई पहलुओं पर दोनों पक्षों में अब भी एकराय नहीं है.
मंगलवार की बैठक के बाद असहमति के तमाम बिन्दुओं के साथ दोनों पक्षों की अनुशंसाओं को कैबिनेट के पास भेज दिया जाएगा. इसके बाद सरकार और नागरिक समाज के सदस्य अन्य राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरु करेंगे.
Posted by राजबीर सिंह
at 9:49 pm.