बुद्धि, समृद्धि और वैभव के देवता है गणेश, हर जगह गणोशोत्सव की धूमधाम

हर जगह गणेशोत्सव की धूम है. मंदिरों और पंडालों में गणपति की आकषर्क मूर्तियां सजाई जा रही हैं.

गुरुवार को गणेश चतुर्थी का त्योहार हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है, आज से गणेशोत्सव की धूम शुरू हो गई है.



पौराणिक मान्यता है कि दस दिवसीय इस उत्सव के दौरान भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र श्री गणेश भगवान पृथ्वी पर निवास करते हैं.



शास्त्रों की जानकारी रखने वाले आचार्य आख्यानंद कहते हैं कि भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है. उन्हें बुद्धि, समृद्धि और वैभव का देवता मान कर उनकी पूजा की जाती है.



गणेशोत्सव की शुरुआत हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भादों माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होती है. इस दिन को गणेश चतुर्थी भी कहा जाता है.

गणेशोत्सव पूरे दस दिन तक चलता है. अनंत चतुर्दशी के दिन यह उत्सव समाप्त होता है. पूरे भारत में गणोशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है.



भगवान गणेश को मनाने के लिए भक्त मंदिरों और पंड़ालों में गणेशजी की मनमोहक मूर्तियां स्थापित करते हैं. पूरा माहोल भक्तिमय हो जाता है. गणेशजी को विघ्नहर्ता देव माना गया है. 'गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ' के भावों से सारा वातावरण गुंजायमान हो जाता है.



गणेशोत्सव की तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं. मूर्तिकार जहां विघ्नहर्ता की आकषर्क मूर्तियां बनाते हैं, वहीं आयोजक चंदा एकत्र कर मंडप स्थापित करते हैं. मूर्तियों का आकार और उनकी कीमत दिनों दिन बढ़ती गई और साथ ही बढ़ता गया इस उत्सव के प्रति लोगों का उत्साह.



पंडित आख्यानंद कहते हैं रोशनी, तरह-तरह की झांकियों, फूल मालाओं से सजे मंडप में गणेश चतुर्थी के दिन पूजा अर्चना, मंत्रोच्चार के बाद गणपति स्थापना होती है. यह रस्म षोडशोपचार कहलाती है.



भगवान को फूल और दूब चढ़ाए जाते हैं तथा नारियल, खांड, 21 मोदक का भोग लगाया जाता है. दस दिन तक गणपति विराजमान रहते हैं और हर दिन सुबह शाम षोडशोपचार की रस्म होती है. 11वें दिन पूजा के बाद प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है. कई जगहों पर तीसरे, पांचवे या सातवें दिन गणेश विसर्जन किया जाता है.’



गणपति उत्सव का इतिहास वैसे तो काफी पुराना है लेकिन इस सालाना घरेलू उत्सव को एक विशाल, संगठित सार्वजनिक आयोजन में तब्दील करने का श्रेय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक लोकमान्य तिलक को जाता है.



इतिहास के सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो. यू जी गुप्ता ने बताया ‘सन 1893 में तिलक ने ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच की दूरी खत्म करने के लिए ऐलान किया कि गणेश भगवान सभी के देवता हैं. इसी उद्देश्य से उन्होंने गणेशोत्सव के सार्वजनिक आयोजन किए और देखते ही देखते महाराष्ट्र में हुई यह शुरूआत देश भर में फैल गई. यह प्रयास एकता की एक मिसाल साबित हुआ.’



प्रो. गुप्ता ने कहा कि एकता का यह शंखनाद महाराष्ट्रवासियों को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एकजुट करने में बेहद कारगर साबित हुआ. तिलक ने ही मंडपों में गणेश की बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं की स्थापना को प्रोत्साहन दिया. गणेश चतुर्थी के दसवें दिन गणेश विसर्जन की परंपरा भी उन्होंने शुरू की.



इतिहास में गहरी दिलचस्पी रखने वाली प्रो. अमिया गांगुली ने बताया ‘अंग्रेज हमेशा सामाजिक और राजनीतिक आयोजनों के खिलाफ रहते थे. लेकिन गणेशोत्सव के दौरान हर वर्ग के लोग एकत्रित होते और तरह-तरह की योजनाएं बनाई जातीं. स्वतंत्रता की अलख जगाने में इस उत्सव ने अहम भूमिका निभाई.

Posted by राजबीर सिंह at 8:56 am.
 

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