अछूत महिलाओं को काशी ने दी मान्यता

'बाबा के दरबार में हाजिरी लगाकर जीवन का उद्धार हो गया." यह उन महिलाओं का कहना रहा जिन्हें समाज में बराबरी का दर्जा हासिल न था.

लेकिन अब ऐसा नहीं है. वक्त बदला और सोच बदली. समाज की मुख्य धारा में जुड़ने की खुशी इन महिलाओं के चेहरे पर साफ झलक रही थी. अलवर व टोंक की अछूत महिलाओं को धर्म व आध्यात्म की नगरी काशी ने न सिर्फ मान्यता दी बल्कि इस पवित्र माटी की अलौकिक आभा ने उनकी अंतर आत्मा को शुद्ध कर दिया.

अलवर व टोंक (राजस्थान) सहित बिहार से सोमवार की सुबह डा. बिन्देश्वर पाठक के नेतृत्व में मैला ढोने वाली 203 महिलाएं बाबा के दर्शन के लिए काशी धाम पहुंची. खास बात यह रही कि यह सभी महिलाएं सिर पर मैला ढोने का काम करती थीं. समाज में हाशिए पर रहीं इन सभी महिलाओं में दर्शन की आतुरता देखने लायक थी.

ऐसा इसलिए कि उन्हें जीवन में पहली बार मंदिर में प्रवेश करने का अनुपम अवसर जो मिला था. इस जत्थे में शामिल महिलाओं ने सबसे पहले मां गंगा की धारा में आस्था की डुबकी लगाई. उसके बाद दशाश्वमेध घाट से हल्के नीले परिधान में हाथों जल से भरा मिट्टी का कलश और 'हर-हर महादेव" का उद्घोष करते हुए महिलाएं श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचीं.

पं. ओपी शास्त्री व पं. सुबोध शास्त्री सहित 11 वैदिक ब्राहृणों के आचार्यत्व में महिलाओं ने बाबा का दर्शन-पूजन व भव्य रुद्राभिषेक किया. इसी क्रम में उन्होंने शनिदेव व माता अन्नपूर्णा का भी दर्शन-पूजन किया. इसके बाद महिलाओं का जत्था संत रविदास मंदिर पहुंचा. मंदिर में विधि-विधान से दर्शन-पूजन का अनुष्ठान पूरा किया गया.

इसके अलावा जत्थे में शामिल महिला श्रद्धालुओं ने नाव पर बैठकर गंगा घाटों की मनोरम सैर भी की. बाद में सभी तेलियाबाग स्थित पटेल धर्मशाला पहुंचे. यहां दोपहर में इन महिलओं ने उच्चजाति के लोगों विशेषकर ब्राहृणों और संस्कृत के विद्वानों के साथ बैठकर भोजन ग्रहण किया. इस दौरान इन लोगों ने खुलकर अपने विचार व्यक्त किये. सभी का यही कहना रहा कि हम सभी ने अस्पृश्यता व भेदभाव की सामाजिक बेड़ियां तोड़ी है. इसे दुनिया को बताने में कोई गुरेज नहीं गर्व होगी.

श्रद्धालु महिलाओं का जत्था 21 जून की सुबह विंध्याचल के लिए रवाना होगा. इसके अलावा वैष्णो देवी सहित देश के विभिन्न मंदिरों में दर्शन-पूजन के लिए जाएंगे.

Posted by राजबीर सिंह at 7:52 pm.
 

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